Sadhana Shahi

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लेखनी कहानी -15-Feb-2024

दिनांक- 15.० 2. 2024 दिवस- गुरुवार प्रदत्त विषय- वो वेलेंटाइन का दिन था प्रतियोगिता हेतु

फरवरी का महीना आते ही चारो तरफ वैलेंटाइन, वैलेंटाइन और वैलेंटाइन की धूम मच जाती है। हाट बाज़ार चॉकलेट, गुलदस्ते, टेडी इत्यादि अनेकानेक उपहारों से भर जाते हैं। किंतु आज के समय में एक सच्चा, चरित्रवान, वैलेंटाइन मिलना आसान काम नहीं है। जिसके पास है उसके पास एक बहुत बड़ी संपदा है।

इस अक्षुण्ण संपदा के सहारे ही हम अपने जीवन रूपी नौका को ख़ुशी- खु़शी पार लगा सकते हैं।

एक सच्चा वैलेंटाइन रिश्तों की गरिमा को कभी भी शर्मसार नहीं करता। वह हमारे अच्छे बुरे वक्त में सदैव कंधे से कंधा मिलाए साथ खड़ा रहता है।

रमा जो अपने घर के पास के ही शॉपिंग मॉल में मैनेजर का काम करती थी। उसी के साथ सोहन भी काम करता था। सोहन बहुत ही खु़श मिजाज़, मेहनती, सुंदर, शालीन , आकर्षक और व्यवहार कुशल लड़का था। दोनों एक साथ काम करते थे, एक साथ चाय नाश्ता सब कुछ करते थे। दोनों में कब एक दूसरे के प्रति आकर्षण पैदा हो गया यह पता ही नहीं चला। और पता चला तो बस तब जब दोनों एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे एक दूसरे के सुख से सुखी दुख से दुखी होने लगे।

लेकिन किसी ने भी अपने दिल की बात एक दूसरे से नहीं कहा था। दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह ही ज़िंदगी को आगे बढ़ा रहे थे। समय का पहिया आगे चलता रहा। रमा घर जाते समय सीढ़ियों से स्लिप करके गिर पड़ी। जिससे उसका पैर टूट गया। रमा अपने घर की एकमात्र कमाऊ सदस्य थी। उसके घर में उसके बूढ़े मांँ-बाप और उसका एक निकम्मा भाई था। जो रमा के ही पैसों पर पलता था।

अब रमा को घर के ख़र्चे की चिंता सताने लगी। जब रमा तीन-चार दिन तक माॅल नहीं आई, तब सोहन को उसके बारे में सोचकर चिंता सताने लगी। और एक दिन वह माॅल बंद होने के बाद रमा के घर गया।

उसने देखा रमा के पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ है। रमा बहुत ही उदास, निराश बैठी हुई है। सोहन जब उससे उसका हाल-चाल पूछ तो रमा फफक कर रोने लगी।

सोहन ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, रमा तुम तो बहुत बहादुर हो। तुम ऐसे रोओगी तो अपने मांँ-बाप का ख़्याल कैसे रखोगी। मुसीबत में रोते नहीं हैं, हिम्मत रखते हैं।

और इस तरह से सोहन ऐसे समझा रहा था जैसे कोई बड़ा- बुज़ुर्ग हो। सोहन की बातों ने रमा को बड़ा संबल प्रदान किया। अब सोहन हर 2 दिन बाद दुकान से घर जाते समय रमा से मिलने आता।और जब भी आता तो कभी राशन, कभी सब्ज़ी, कुछ न कुछ लेकर आता।

रमा को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मरता क्या ना करता है अतः मजबूरी में उसे उन चीजों को लेना पड़ता। 2 महीने में रमा का पैर सही हो गया। रमा मॉल जाने लगी। रमा को ठीक हुआ देखकर सोहन की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। किंतु, अभी भी दोनों ने एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार नहीं किया था।

दोनों मित्रावत ही अपने काम को हंँसते- मुस्कुराते, लड़ते- झगड़ते, एक दूसरे का सहारा बनते कर रहे थे। देखते-देखते प्यार का महीना कहा जाने वाला फरवरी महीना भी आ गया। मॉल में वे दोनों नवयुगल को, प्रेमी-प्रेमिका को टेडी, गुलदस्ते, चॉकलेट्स देते तो दोनों के मन में भी प्यार के अंकुर फूटते। लेकिन इसके पहले कि अंकुर पौध बनें वो उसे अपने मित्रता की मिट्टी से दबा देते। 13 फरवरी का दिन था रमा अपने घर गई उस दिन उसे सोहन की बहुत याद आ रही थी। सोहन भी अपने घर जाने पर बेचैन था। लेकिन दोनों में से कोई भी अपने दिल की बात एक दूसरे से कह नहीं पा रहे थे। तभी रमा की सहेली रमा से मिलने आई। जब रमा ने अपना पिछला हाल बताया तो उसकी सहेली कुछ मुस्कुराई और मुस्कुराते हुए उसने कहा,वह सिर्फ़ तुम्हारा मित्र ही है या उसके आगे भी कुछ है। रमा ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराते हुए उसने सर झुका दिया। रमा के मित्र ने कहा, अरे पगली शायद तुझे पता ही नहीं है,वह तुझे बेहद प्यार करता है। रमा आंँखें ऊपर की और इस शब्द को सुनते ही उसकी आंँखों में खुशी के आंँसू छलक उठे।उसने कहा प्यार तो मैं भी करती हूंँ लेकिन इज़हार करने से डरती हूंँ। कहीं वह इंकार न कर दे।

उसकी सहेली ने कहा, ऐसा नहीं हो सकता। मेरा मन कह रहा है कि वह भी तुझसे प्यार करता है। अगली सुबह 14 फरवरी को रमा जब माॅल गई तब सोहन कोबताइ कि वह एक लड़के से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। बहुत जल्दी वह यह बात अपने मां-बाप को भी बताने वाली है। रमा के मुंँह से इस बात को सुनकर सोहन खुश होने का नाटक तो किया। लेकिन अंदर-अंदर द्रवीभूत हो उठा। उसे अपने आप पर अफ़सोस हो रहा था कि उसने पहले ही क्यों नहीं अपने दिल की बात रमा को बता दी।

ख़ैर अब जो होना था हो चुका था। सोहन ने रमा से पूछा कौन है वह ख़ुशनसीब? रमा ने मुस्कुराते और बलखाते हुए कहा, अरे वह तो मेरा वैलेंटाइन था। रमा के मुंँह से इस तरह का शब्द सुनकर सोहन ने कहा, क्या तुम अपने वैलेंटाइन को मुझसे नहीं मिलवाओगी? रमा ने कहा क्यों नहीं, ज़रूर मिलवाऊँगी। आज शाम तुम मेरे घर आना मैं तुम्हें उससे ज़रूर मिलवाऊँगी।

रमा और सोहन का समय काटे नहीं कट रहा था। मॉल बंद हुआ रमा अपने घर गई। आधे घंटे बाद सोहन भी उसके घर पहुंँच गया और जाकर देखा तो रमा के घर कोई भी बाहरी आदमी नहीं था। सिर्फ़ उसके मांँ-बाप, उसका भाई और रमा थे। सोहन ने प्रश्न वाचक नज़रों से रमा की तरफ़ देखा और इशारों में पूछा, कहांँ है तुम्हारा वेलेंटाइन?

राम ने भी उसकी ओर देखा और उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने कमरे में ले गई। सोहन ने देखा उसके कमरे की एक दीवार पर सोहन का एक बड़ा सा फोटो लगा हुआ था और उस पर लिखा हुआ था, अरे वह तो मेरा वैलेंटाइन था।

सोहन एक बार रमा को और एक बार उस फोटो को देखा। रमा ने हाँ में गरदन हिलाकर अपनी स्वीकृति प्रदान किया। और ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित किया।

सोहन भी एकटक कभी अपनी फ़ोटो तो कभी रमा को देखा और वह भी ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित पित कर रहा था कि उन्होंने दोनों को इतना अच्छा वैलेंटाइन दिया। जिसे आगे वो पति- पत्नी के रूप में स्वीकार कर उसके साथ अपने जीवन जी सकते हैं

साधना शाही, वाराणसी

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5 Comments

Rupesh Kumar

18-Feb-2024 05:22 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

17-Feb-2024 03:47 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Shnaya

17-Feb-2024 10:46 PM

Nice one

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Varsha_Upadhyay

16-Feb-2024 11:23 PM

Nice

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